उत्तराखंड में 30% सैलरी कटौती का ऑर्डर नहीं मान रहे भाजपा विधायक, कांग्रेसी विधायकों के वेतन से हर महीने 6 गुना ज्यादा की कटौती

National Samachar : अप्रैल का दूसरा हफ्ता अभी शुरू ही हुआ था। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अपने आवास पर मंत्रिमंडल की एक इमरजेंसी बैठक बुलवाई। इसमें लॉकडाउन से जुड़े कुछ अहम फैसलों के साथ ही यह निर्णय भी लिया गया कि कोरोना से निपटने के लिए प्रदेश के सभी विधायकों के वेतन में एक साल तक 30% की कटौती की जाएगी। इस फैसले की तारीफ तो हुई लेकिन इसके साथ ही इस पर राजनीति भी शुरू हो गई। प्रदेश की नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश ने बयान दिया कि कैबिनेट ने यह फैसला विपक्ष से बात किए बिना ही ले लिया। उनका कहना था, विधायकों के वेतन में कटौती उनकी सहमति से होनी चाहिए कैबिनेट के फैसले से नहीं। मुख्यमंत्री यदि हमसे बात करते तो हम इस कटौती के लिए कभी इनकार नहीं करते। उन्होंने हमें विश्वास में लिए बिना ही यह फैसला ले लिया, जो कि गलत है। इंदिरा हृदयेश के इस बयान ने उस वक्त काफी तूल पकड़ा। भाजपा ने आरोप लगाया कि कोरोना की इस मुश्किल घड़ी में भी कांग्रेसी विधायक अपने वेतन में कटौती के लिए तैयार नहीं हैं। भाजपा और कांग्रेस विधायकों के बीच यह गतिरोध कुछ दिन जारी रहा। आखिरकार इंदिरा हृदयेश ने अपनी पार्टी के विधायकों के वेतन में 30 फीसदी कटौती का सहमति पत्र जारी कर दिया। इसके साथ ही प्रदेश के सभी 11 कांग्रेसी विधायकों के वेतन में से 57,600 रुपए प्रति माह काटे जाने लगे। कांग्रेसी विधायकों को हैरानी तब हुई जब उन्हें मालूम पड़ा कि उनके वेतन से तो 30 प्रतिशत कटौती हो रही है लेकिन भाजपा विधायकों के साथ ऐसा नहीं हो रहा। भाजपा के प्रदेश में कुल 58 (एक मनोनीत) विधायक हैं जिनमें से सिर्फ़ 13 ही ऐसे हैं जो अपने वेतन का 30 प्रतिशत कटवा रहे हैं। इस बात की पुष्टि तब हुई जब केदारनाथ से विधायक मनोज रावत ने सूचना के अधिकार में इससे संबंधित जानकारी मांगी। इस जानकारी में खुलासा हुआ कि भाजपा के ज्यादातर विधायक ही अपनी कैबिनेट के फैसले पर अमल नहीं कर रहे हैं। आरटीआई के तहत मिली जानकारी में सामने आया कि भाजपा के सिर्फ़ 13 विधायक ही अपने वेतन में से 57,600 रुपए हर महीने दान कर रहे हैं। भाजपा के 16 विधायक ऐसे हैं जो अपने वेतन में से 30 हज़ार रुपए हर महीने कटवा रहे हैं, 4 विधायक ऐसे हैं जो 12,600 रुपए और 13 ऐसे हैं जो सिर्फ नौ हजार रुपए प्रति माह ही कटवा रहे हैं। दिलचस्प यह भी है कि खुद प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष बंशीधर भगत भी अपने वेतन में से सिर्फ नौ हजार रुपए प्रति माह ही कटवा रहे हैं।


कांग्रेस विधायक ने कहा- यह फैसला लेने का हक कैबिनेट को नहीं
कांग्रेसी विधायक मनोज रावत बताते हैं, ‘हम वेतन में कटौती के कभी खिलाफ नहीं थे। हमारी आपत्ति दो बातों को लेकर थी। एक तो ये कि यह फैसला कैबिनेट के बजाय सबकी सहमति से लिया जाना था। दूसरा कि हमें बताया जाता कि यह पैसा आखिर खर्च कहां होने वाला है। हमें अब तक भी नहीं बताया गया है कि ये पैसा पीएम केयर फंड में जाएगा या मुख्यमंत्री राहत कोष में जाएगा या विवेकाधीन कोष में जाएगा।
रावत आगे कहते हैं, पहले तो यह फैसला कैबिनेट को करने का अधिकार ही नहीं था क्योंकि वेतन में कटौती प्रत्येक विधायक का व्यक्तिगत फैसला है। लेकिन अगर फैसला कर ही लिया था तो भाजपा अपने विधायकों को तो इस पर अमल करने को तैयार करती। हमारे तो सभी विधायक कोरोना संकट को देखते हुए इस फैसले के अनुरूप 57,600 रुपए हर महीने अंशदान कर रहे हैं। लेकिन भाजपा के सिर्फ चुनिंदा विधायक ही ऐसा कर रहे हैं। खुद उनके प्रदेश अध्यक्ष तक इस फैसले पर अमल नहीं कर रहे और सिर्फ 9 हजार रुपए ही दे रहे हैं।


सीएम-स्पीकर कितना दान कर रहे, नहीं पता
प्रदेश के मुख्यमंत्री, विधानसभा अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और सभी कैबिनेट मंत्री अपने वेतन का कितना हिस्सा दान कर रहे हैं, इसकी जानकारी मांगी गई सूचना में उपलब्ध नहीं है। लेकिन प्रदेश सचिवालय में काम करने वाले एक सूत्र बताते हैं, ‘सत्ताधारी भाजपा के तमाम विधायक तो अपनी कैबिनेट के फैसले का पालन नहीं कर रहे। लेकिन गनीमत है कि कम से कम कैबिनेट में शामिल लोग अपने फैसले का पालन कर रहे हैं। मुख्यमंत्री और अन्य कैबिनेट मंत्रियों के वेतन से 30 फीसदी कटौती हो रही है।

रिपोर्ट : राहुल सिंह

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