क्या ‘नया’ तालिबान ‘पुराने’ तालिबान से अलग है या सिर्फ़ अलग दिखने का दिखावा कर रहा है?

साल 1996 की बात है.

मरियम सफ़ी उस वक़्त 19 साल की थीं. वो अफ़ग़ानिस्तान के मज़ार-ए-शरीफ़ में मेडिकल की पढ़ाई कर रही थीं. अचानक एक ही दिन में उनकी पूरी दुनिया बदल गई. तालिबान ने मज़ार-ए-शरीफ़ पर जब क़ब्ज़ा किया तो उन्हें अपनी पढ़ाई अचानक रोकनी पड़ गई. उनके (तालिबान) सत्ता में आने के बाद अफ़ग़ानिस्तान में महिलाओं की शिक्षा पर रोक लगा दी गई थी. महिलाएं घर से अकेले निकलती थीं तो धार्मिक पुलिस उन्हें पीटती थी. उन्हें केवल अपने पिता, भाई और पति के साथ ही घर से बाहर निकलने की इजाज़त थी. उस दौरान सार्वजनिक रूप से मृत्यु दंड देने, स्टोनिंग (पत्थरों से मारने की प्रथा) और हाथ-पैर काटने जैसी सज़ा आम बात थी. इस डर और खौफ़ की वजह से मरियम की मेडिकल की पढ़ाई भी थम गई. वो घर में क़ैद हो कर रह गईं. लेकिन जब 2001 में अमेरिका के नेतृत्व में नेटो ने अफ़ग़ानिस्तान पर हमला किया और तालिबान को खदेड़ दिया तो मरियम ने अपनी पढ़ाई पूरी की.

बीते रविवार को काबुल में तालिबान के क़ब्ज़े के बाद मरियम की वो यादें एक बार फिर ताज़ा हो गई हैं.

अब बात 17 अगस्त 2021 की

“काबुल में तालिबान के क़ब्ज़े के दो दिन बाद जिस होटल में मैं रुका हूँ, मैंने पाया कि होटल के पुरुष स्टाफ़ ने दो दिनों से शेव तक नहीं किया है. होटल की महिला स्टाफ़ अब रिसेप्शन, रूम सर्विस और सफ़ाई के काम में नहीं लगी हैं. वो होटल से नदारद हैं. होटल में बैकग्राउंड म्यूज़िक जो दो दिन पहले तक चलता था, अब बिल्कुल बंद है.

ऐसे क्यों हुआ? जब मैंने लोगों से पूछा तो उनका जवाब था, तालिबान से जुड़े हमारे दोस्त यहाँ हैं.

रविवार को तालिबान के अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी काबुल पर क़ब्ज़ा करने के बाद के हालात को बयां करती ये है बीबीसी संवाददाता मलिक मुदस्सिर की रिपोर्ट का अंश.

तालिबान 2.0 बनाम तालिबान 1.0

साल 1996 और साल 2021 के ऊपर के दो वाक़ये – तब और अब के तालिबान के वो चेहरे हैं जो मज़ार-ए-शरीफ़ और काबुल के हालात को तालिबान शासन के दौरान बयान करते हैं. दोनों में बहुत फ़र्क हो- ऐसा आपको नज़र नहीं आएगा.

लेकिन इन दोनों घटनाओं के बीच तालिबान का एक तीसरा चेहरा भी मंगलवार की देर शाम दुनिया को नज़र आया.

अफ़ग़ानिस्तान पर दोबारा नियंत्रण हासिल करने के बाद तालिबान का पहला संवाददाता सम्मेलन मंगलवार को देर शाम काबुल में आयोजित हुआ.

तालिबान के प्रवक्ता ज़बीहुल्लाह मुजाहिद अपने दो और साथियों के साथ कैमरों के सामने पहली बार आए. स्थानीय भाषा में उन्होंने मीडिया को संबोधित करते हुए तालिबान का वो ‘उदार’ चेहरा दिखाया जो 1996-2001 वाले तालिबान से बिल्कुल अलग था.

जबीहुल्लाह मुजाहिद ने प्रेस कॉन्फ़्रेंस में कहा, “हम अंतरराष्ट्रीय समुदाय को भरोसा दिलाना चाहते हैं कि उनके साथ कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा. हम यह तय करेंगे कि अफ़ग़ानिस्तान अब संघर्ष का मैदान नहीं रह गया है. हमने उन सभी को माफ़ कर दिया है जिन्होंने हमारे ख़िलाफ़ लड़ाइयां लड़ीं. अब हमारी दुश्मनी ख़त्म हो गई है. हम शरिया व्यवस्था के तहत महिलाओं के हक़ तय करने को प्रतिबद्ध हैं. महिलाएं हमारे साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करने जा रही हैं.”

यानी आज का तालिबान टीवी कैमरे के सामने बात तो महिलाओं को काम करने की छूट और बदला न लेने की कर रहा है, लेकिन ज़मीन पर वो स्थिति दिखाई नहीं पड़ती. इसलिए चर्चा है कि क्या 2021 का तालिबान 1996 वाले तालिबान से काफ़ी अलग है? या ये महज़ एक दिखावा है? या फिर समय की माँग?

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