योगी आदित्यनाथ का क्या बीजेपी-संघ के पास उत्तर प्रदेश में कोई विकल्प नहीं है?

उत्तर प्रदेश में दो हफ़्ते की गर्मागर्म राजनीतिक हलचल के बाद फ़िलहाल माहौल कुछ शांत दिख रहा है लेकिन इस शांति की अवधि कितनी लंबी होगी, इसे लेकर आशंकाएं बनी हुई हैं.

नई दिल्ली : यूपी के नेताओं के साथ बैठकों के बाद बीजेपी के केंद्रीय नेताओं ने भले ही किसी बदलाव को अटकलबाज़ी बताया हो और ‘सब कुछ ठीक-ठाक’ होने का संदेश देने की कोशिश की हो लेकिन यह संदेश इसी रूप में न तो बीजेपी नेताओं और कार्यकर्ताओं के बीच पहुंचा है और न ही आम लोगों के पास. यानी सरकार और संगठन के स्तर पर बदलाव की चर्चाएं जारी हैं.

राजनीतिक जगत में इस बात की भी चर्चा है कि योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाना बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शीर्ष नेताओं को अब ऐसा फ़ैसला समझ में आ रहा है, जिसे अब बदलना और बनाए रखना, दोनों ही स्थितियों में घाटे का सौदा दिख रहा है. दूसरे, पिछले चार साल के दौरान बतौर मुख्यमंत्री, योगी आदित्यनाथ की जिस तरह की छवि उभर कर सामने आई है, उसके सामने चार साल पहले के उनके कई प्रतिद्वंद्वी काफ़ी पिछड़ चुके हैं.

“विधायकों की कोई हैसियत नहीं रह गई”

यूपी में बीजेपी के एक विधायक नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं, “योगी ने बतौर मुख्यमंत्री ख़ुद को वैसे ही बना लिया है जैसे प्रधानमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी हैं. धार्मिक कट्टरता जैसी कई बातों में वो उनसे कई गुना आगे हैं और ऐसा दिखते भी हैं. मंत्रियों और विधायकों की हैसियत यहां भी वैसी ही है जैसी कि केंद्र में मंत्रियों और सांसदों की है. नौकरशाहों के ज़रिए यहां भी सरकार चल रही है और केंद्र में भी.”

वे कहते हैं, “विधायक तो अब सिर्फ़ विधानसभा में गिनती करने के लिए रह गए हैं, अन्यथा उनकी कोई हैसियत नहीं है. विकल्प के तौर पर यूपी में भी बीजेपी को योगी के अलावा कोई उसी तरह नहीं दिख रहा है जैसे कि केंद्र में मोदी का विकल्प नहीं दिख रहा है. पर ऐसा है नहीं. विकल्प दोनों के हैं और इनसे बेहतर भी.”

साल 2017 में बीजेपी ने यूपी विधानसभा चुनाव में किसी भी नेता को मुख्यमंत्री का चेहरा बनाकर चुनाव नहीं लड़ा था और न ही कोई ऐसा नेता था जिसे सामान्य रूप से चुनाव से पहले मुख्यमंत्री के तौर पर देखा जा रहा हो. चर्चा में कई नाम थे जिनमें तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य और मौजूदा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी थे.

योगी को सीएम बनाने में बीजेपी ने क्या नज़रअंदाज किया?

कई दिनों की कसरत और भारी हंगामे के बाद लखनऊ में योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री के साथ ही केशव प्रसाद मौर्य और डॉक्टर दिनेश शर्मा को उप मुख्यमंत्री बनाने की घोषणा हुई. हालांकि इससे ठीक पहले, मनोज सिन्हा का भी नाम मुख्यमंत्री के तौर पर ख़ूब प्रचारित किया गया लेकिन वह उसी तेज़ी के साथ हवा हो गया, जिस तेज़ी के साथ चला था.इस दौरान, मुख्यमंत्री के तौर पर योगी आदित्यनाथ की कार्यशैली पर कई बार सवाल उठे, क़ानून-व्यवस्था के मामले में शुरुआत से लेकर अब तक वो विपक्ष के निशाने पर रहे हैं और ‘योगी होने के बावजूद जातिवादी सोच’ के आरोप विपक्ष के अलावा बीजेपी के भी कई नेता लगा चुके हैं, बावजूद इसके योगी आदित्यनाथ की छवि बीजेपी के एक ‘फ़ायरब्रांड प्रचारक’ और हिन्दुत्व के प्रतीक नेता के तौर पर बनती गई. इन सबकी वजह से मुख्यमंत्री के तौर पर उनकी तमाम कमियों को भी नज़रअंदाज़ कर दिया गया.यहां तक कि पिछले दो हफ़्ते से आरएसएस और बीजेपी के तमाम नेताओं की दिल्ली और लखनऊ में हुई बैठकों के बाद यह माना जा रहा था कि शायद अब यूपी में नेतृत्व परिवर्तन हो जाए लेकिन बैठक के बाद वो नेता भी योगी आदित्यनाथ की तारीफ़ कर गए जिन्होंने कई मंत्रियों और विधायकों के साथ आमने-सामने बैठक की और सरकार के कामकाज का फ़ीडबैक लिया.

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