तालिबान से कुछ कहना और कुछ पूछना चाहती हैं ये पाँच अफ़गान औरतें

20 साल पहले अफ़ग़ानिस्तान की सत्ता पर तालिबान ने जब पहली बार राज किया तब महिलाओं के प्रति उनकी क्रूरता जैसे कि सिर काट देना, पत्थर से मारमारकर हत्या और बुर्का पहनने के लिए मजबूर करना उनकी पहचान रही.

नई दिल्ली : जब ये चरमपंथी सत्ता से बेदख़ल किए गए, उसके बाद से अफ़ग़ान महिलाओं ने बहुत तरक्की की है- वो मंत्री, मेयर, जज और पुलिस अधिकारी जैसे पदों तक जा पहुंचीं.

लेकिन तालिबान की वापसी से महिलाओं के भविष्य पर अनिश्चितता के बादल मंडराने लगे हैं.

ये कहना है बीबीसी से बात करने वालीं उन पांच जानी-मानी महिलाओं का जिन्होंने हमसे अपना डर साझा किया.

“संघर्ष करना होगा, बलिदान देना होगा”

“किसी शीर्ष अधिकारी का इंटरव्यू लेती एक महिला पत्रकार”, ये शायद ही दुनिया के किसी देश में ख़बर बने. लेकिन महिलाओं और लड़कियों के विरुद्ध ताबिलान के क्रूर इतिहास को देखते हुए कई लोग ये जान कर हैरान रह गए कि तालिबान के एक शीर्ष अधिकारी मौलवी अब्दुलहक़ हेमाद टोलो न्यूज़ की टीवी एंकर बेहेश्ता अरघंद को इंटरव्यू देने के लिए राज़ी हो गए हैं.

मंगलवार को इस इंटरव्यू एक और परंपरा को तोड़ दिया- यह पहली बार था जब तालिबान के किसी नेता ने टीवी स्टूडियो में आकर ऐसा किया.

स्पष्ट दिख रही इस स्वीकृति के बावजूद बेहेश्ता को अब भी संदेह है.

बेहेश्ता का संदेह और एंकर ख़ादिजा अमीन के साथ क्या हुआ?

उस इंटरव्यूर के बाद बेहेश्ता ने बीबीसी से कहा, “वो कहते हैं कि उन्हें अफ़ग़ान महिलाओं से कोई समस्या नहीं है, हम उनके काम करने का समर्थन करते हैं… लेकिन मुझे डर है.”

उन्होंने कहा कि काबुल शहर और उनके स्टूडियो में माहौल बदल गया है. अब टीवी पर अपने मेहमानों के साथ वे विवादास्पद मुद्दों पर खुल कर बातें नहीं करती हैं. वो अपने शब्दों का सावधानी से चयन करती हैं.

“एक या दो महीने बाद वो (तालिबान) हमारे लिए कुछ क़ानून बनाएंगे. मुझे लगता है कि वो हमें वह करने की अनुमति नहीं देंगे जो हम चाहते हैं. वो हमारी आज़ादी कठिन बना देंगे. अभी वो कोई प्रतिक्रिया नहीं कर रहे लेकिन हमें सावधान रहना होगा. मैं बहुत सावधान हूं.”

1990 के दशक के अंत और 2000 के दशक की शुरुआत में तालिबान समूह ने इस्लामी शरियत क़ानून की सख्त व्याख्या करते हुए अफ़ग़ानिस्तान पर अपने शासन के दौरान टीवी, म्यूज़िक और सिनेमा पर प्रतिबंध लगा दिया था.

उन्हें बेदख़ल किए जाने के बाद के वर्षों के दौरान यहां दर्जनों टीवी नेटवर्क और 170 से अधिक एफ़एम रेडियो स्टेशन बने.

तालिबान की सत्ता में वापसी को देखते हुए कुछ टीवी चैनल ने अपनी महिला एंकर को ऑफ़ एयर कर दिया है. यहां तक कि राजनीतिक कार्यक्रमों की जगह इस्लाम के धर्मशास्त्र पर चर्चा के विषय लाए गए हैं.

चूंकि अब तक प्रतिशोध जैसी चीज़ें नहीं देखने को मिली हैं तो कई चैनल वापस अपने सामान्य कार्यक्रमों को दिखाने लगे हैं.

हाल के प्रेस कॉन्फ्रेंस में तालिबान ने यहां तक कहा कि महिलाओं को “इस्लाम के क़ानून की संरचना के भीतर” काम करने और पढ़ने की अनुमति दी जाएगी.

लेकिन मंगलवार (17 अगस्त) को एक और न्यूज़ एंकर ख़ादिजा अमीन ने सोशल मीडिया पर पोस्ट किया कि तालिबान ने उन्हें और अन्य महिला कर्मचारियों को देश की सरकारी टीवी रेडियो टेलीविज़न अफ़ग़ानिस्तान से अनिश्चित काल के लिए निलंबित कर दिया है.

कई जगहों पर इन चरमपंथियों ने महिलाओं को काम पर जाने से रोक दिया है. कुछ महिलाओं ने बीबीसी से कहा कि वो डर की वजह से काम पर नहीं जा रहीं.

बेहेश्ता काम पर लौट आई हैं क्योंकि उन्हें लगा कि अनिश्चितता की इस घड़ी में उनके न्यूज़रूम में रहने की ज़रूरत है.

उन्होंने बताया, “मैंने ख़ुद से कहा, चलो… ये अफ़ग़ान महिलाओं के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण वक़्त है.”

जब वे अपने दफ़्तर जा रही थीं तो उन्हें तालिबान लड़ाकों ने रोककर पूछा कि वे अकेले क्यों बाहर निकली हैं? शरिया के अनुसार एक पुरुष रिश्तेदार उनके साथ क्यों नहीं है?

वो कहती हैं, “हम अच्छी स्थिति में नहीं हैं. हम जानते हैं कि अफ़ग़ानिस्तान की महिलाओं के लिए ये अच्छा नहीं है. निश्चित तौर पर आने वाली पीढ़ियों के लिए हमें संघर्ष करना होगा, बलिदान भी देना होगा.”

यह पिछली बार जैसा नहीं है

एक स्त्री रोग विशेषज्ञ ने, जिनका एक प्राइवेट क्लीनिक है और वो काबुल के अस्पताल में काम करती हैं, बीबीसी को बताया कि राजनीतिक उथलपुथल से उनका कामकाजी जीवन प्रभावित नहीं हुआ है.

अपना नाम नहीं बताने की शर्त पर डॉक्टर ने कहा, “मैं तीन दिन बाद काम करने आई हूं. यहां स्थिति सामान्य है.”

वो कहती हैं कि तालिबान ने एलान किया है कि महिला डॉक्टर अस्पताल और अपने प्राइवेट क्लीनिकों में काम करना जारी रख सकती हैं.

डॉक्टर कहती हैं कि कुछ जगहों पर तालिबान सक्रिए रूप से लोगों को काम पर वापस आने के लिए कह रहे हैं, लेकिन डर के माहौल की वजह से कई लोग अभी भी नहीं आ रहे हैं.

उन्होंने बताया, “कई डॉक्टर और दाई अब तक अस्पताल नहीं आईं क्योंकि वो डरी हुई थीं और तालिबान के एलान से आश्वस्त नहीं थीं.”

ग्रामीण अफ़ग़ानिस्तान के कई हिस्सों में स्वास्थ्य सेवाएं या तो बहुत कम हैं या न के बराबर हैं, लेकिन मातृ मृत्यु दर को कम करने के लिए देश में नर्स और दाइयों की संख्या बढ़ाने जैसे उपाए किए गए हैं.

जैसा कि दिख रहा है, काबुल की स्त्री रोग विशेषज्ञ आशावादी हैं.

अस्पताल जाते वक़्त उन्हें सड़कों पर बहुत कम लोग दिखते हैं और कई दुकानें बंद हैं लेकिन तालिबान ने उनके कपड़े की जांच करने के लिए उन्हें नहीं रोका.

वो कहती हैं, “यह उनके पिछले कार्यकाल के जैसा नहीं है. यह पिछली बार की तुलना में थोड़ा बेहतर है.”

“महिलाएं एजेंडे का हिस्सा नहीं”

अफ़ग़ानिस्तान की संसद की 250 सीटों में से 27 फ़ीसद महिलाओं के लिए आरक्षित हैं और अभी सदन में 69 महिला सांसद हैं.

लेकिन तालिबान के नेताओं में कोई महिला नहीं है और यह अभी तक स्पष्ट नहीं है कि वो महिलाओं को साथ लेकर सरकार बनाएंगे या नहीं.

एक महिला सांसद फ़रज़ाना कोचाई कहती हैं, “हमें उनके एजेंडे के बारे में पता नहीं है. हमारी चिंता है कि वो महिलाओं के बारे में कभी बात नहीं करते.”

वे कहती हैं कि महिलाओं के बग़ैर बनी सरकार को अंतरराष्ट्रीय समुदाय और सिविल सोसाइटी ज़िम्मेदार नहीं मानेंगे.

फ़रज़ाना ने कहा, “हम महिलाओं को समाज से नहीं हटाया जाना चाहिए. हमें अपना काम जारी रखना चाहिए और सरकार के साथ साथ जहां भी हम चाहती हैं वहां रखना चाहिए.”

 

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